'The Talkative Turtle' in Hindi

Paromita Pramanick
बच्चो की कहानी: बातूनी कछुआ
Batuni Kachhua

एक झील के किनारे पर एक कछुआ रहता था। दो हंस भी वहीं रहते थे। कछुए की दोनों हंसों से दोस्ती थी। तीनों पक्के मित्र थे। एक बार काफी दिनों तक वर्षा नहीं हुई। झील सूखने लगी।
एक हंस दूसरे से बोला, "चलो, कहीं और चले। यहाँ तो बिना पानी के मर जाएँगे।"
दूसरा हंस बोला, "हाँ मित्र, तुम ठीक कहते हो, चलो।"
वे लोग अपने मित्र कछुए के पास गए। बोले, "भाई, राम-राम हम लोग यह जगह छोड़ कर जा रहे हैं। तुम्हें राम-राम कहने आए हैं।"
कछुआ बोला, "भाइयो, राम-राम मुझे भी अपने साथ ले चलो न।"
हंस बोले, "तुम्हें कैसे ले चलें तुम तो उड़ नहीं सकते।"
कछुआ बोला, 'कोई उपाय करो। मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता।"

हंस उपाय सोचने लगे। कछुआ भी उपाय सोचने लगा। पास ही उसे एक डंडी दिखाई दी। वह डंडी उठा कर ले आया और बोला, "इसे तुम दोनों अपनी-अपनी चोंच में पकड़ लेना। मैं डंडी को बीचोबीच दाँत से पकड़ लूँगा। तुम लोग उड़ोगे, तो मैं भी लटका-लटका चला चलूँगा।"
एक हंस बोला, "यह अच्छा उपाय है। ऐसा ही करेंगे।"
दूसरा हंस बोला, "हाँ ऐसा ही करेंगे।"

दूसरे दिन सवेरे-सवेरे वे लोग मिले। एक हंस बोला, कछुए भाई, डंडी को बीच-से पकड़ लो।
कछुए ने डंडी को दाँतों से पकड़ लिया। एक हंस ने डंडी को एक ओर से अपनी चोंच में दबा लिया। दूसरे हंस ने डंडी को दूसरी ओर से अपनी चोंच में दबा लिया। फिर हंसों ने पंख फड़फड़ाए। वे उड़े। उनके मुँह में डंडी थी। डंडी को कछुआ पकड़े हुए था। हंस ऊपर उठे। उनके साथ कछुआ भी ऊपर उठा। उसे ऊपर से नीचे का दृश्य देखने में बड़ा मज़ा आया।
तभी हंसों ने चाल धीमी की। वे नीचे उतर आए। ज़मीन पर बैठ उन्होंने डंडी छोड़ दी। कछुआ भी डंडी छोड़ कर बोला, "क्या हुआ? नीचे क्यों उतर आए?"

एक हंस बोला, "तुम्हें एक बात बतानी थी।"
दुसरा हंस बोला, "हाँ तुम्हें एक ज़रूरी बात बतानी थी।"
कछुआ बोला, "तो बताओ। क्या बात है?"
"कछुए भाई, तुम बातूनी हो। बहुत बोलते हो," एक हंस ने कहा।
"लेकिन उड़ते समय तुम कुछ नहीं बोलना," दुसरा हंस बोला।
कछुआ चिल्लाया, "क्यों न बोलूँगा? ज़रूर बोलूँगा।"
"नहीं भाई, तुम बोलोगे तो डंडी कैसे पकड़ोगे? जब बोलोगे तो मुँह खुल जाएगा। मुँह खुलते ही डंडी छूट जाएगी। तब तुम गिर पड़ोगे।"
कछुए की समझ में बात आ गई। बोला, "हाँ, मैं नहीं बोलूँगा। नहीं तो मैं गिर जाऊँगा।"

तब वे हंस पंख फैला कर फिर से उड़ने लगे। कछुआ डंडी के सहारे लटका रहा। वह बिना पंखों के उड़ रहा था। नीचे ज़मीन पर खड़े कुछ लोग देख रहे थे कि दो हंस उड़ रहे है। उनके मुँह में एक डंडी है। डंडी से कछुआ लटका है। लोगों को यह देख कर बड़ा मज़ा आ रहा था। वे लोग बहुत खुश हुए।
हंस उड़ते रहे। वे चुप रहे। कछुआ भी चुप रहा। उड़ते-उड़ते वे बहुत दूर चले गए। जो भी उन्हें देखता, वह खुश हो जाता, मुसकराए बिना न रह पाता।

एक जगह एक लड़के ने कहा, "ये हंस बड़े बुद्धिमान हैं। देखो, कैसा उपाय सोचा है।" पास में खड़ी लड़के की माँ ने कहा, "हाँ, हंस बड़े बुद्धिमान हैं। वे ही ऐसा उपाय सोच सकते हैं। कछुआ तो बुद्धू होता है।"
कछुए के जी में आया कि कहे, "मैं बुद्धू नहीं हूँ। मैं बुद्धिमान हूँ। यह उपाय मुझे ही सूझा है।" लेकिन वह चुप ही रहा। बोलना चाहते हुए भी वह कुछ न बोला।

अगले गाँव में कुछ लड़के खेल रहे थे। उन्होंने दो हंसों को कछुआ ले जाते हुए देखा। वे तालियाँ बजाने लगे। एक लड़का चिल्ला कर बोला, "देखो, देखो दो बुद्धिमान हंस एक मूर्ख कछुए को उड़ा कर लिए जा रहे है।"
अब तो कछुए से नहीं रहा गया। वह बोला, "मैं....."
लेकिन वह अपनी बात पूरी न कर पाया। मुँह खोलते ही डंडी उसके मुँह से छूट गई। कछुआ धड़ाम से एक पत्थर पर जा गिरा। उसकी पीठ फट गई और वह मर गया।
सीख: कुछ बेमतलब बातों पर ध्यान न देना ही समझदारी है।
Moral: It is prudent to ignore some unrealistic things.

Reference: ज्ञान गंगा (Gyan Ganga Book Series)

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